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क्या है इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मे कोहेबेशन

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  इलैक्ट्रोहोम्यो पैथी मे कोहेबेशन की प्रक्रिया इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मे औषधियो का निर्माण कोहेबेशन प्रक्रिया के द्वारा ही होता है । कोहेबेशन प्रकिया के अंतर्गत पौधे की आदि शक्ति नष्ट नही होती अर्थात पौधे के औषधीय गुण  सुरक्षित रहते है । कोहेबेशन प्रक्रिया मे सर्वप्रथम जिस पौधे का अर्क (ऐसेंस) निकालना हो उस पौधे को साफ जल से हल्के हाथो से धो लेते है फिर कांच के जार मे आषुत जल (तीसरी वर्षा का पानी / डिस्टिल वाटर )  भरकर उसमे साफ किये पौधे को डाल देते है फिर जब कुछ दिनो के बाद वह पौधा अपना रंग छोडने लगे या पानी का रंग बदलने लगे तब उस जार से वह पौधा निकालकर उसी औषधि का एक नया पौधा  डाल देते है और यह प्रकिया लगातार तब तक चलती रहती है जब तक नया पौधा जार मे डालने पर अपना रंग छोडना बंद न कर दे या उसमे नये किल्ले निकलना शुरू न हो जाये। इस प्रकिया के बाद एक नये जार मे इस अर्क को छान लेते है यह गाढा व गहरे हरे -पीले रंग का अर्क होता है । इसे स्पेजरिक एसेंस कहते है । अब इसमे आवश्यकता अनुसार आषुत जल मिलाते है ।  अब आधुनिक तरीके से भी कोहेबेशन की प्रकिया की जाने लगी इसमे एक मशीन के माध्यम से आषुत

स्तनपान से क्या फायदे है और इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन से दूध मे बढ़ोतरी

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 स्तनपान क्यो जरूरी है ? माँ का दूध बच्चे की भूख मिटाता है, उसके शरीर मे पानी की आवश्यकता को पूरी करता है, हर प्रकार कि बीमारी से बचाता है, और वो सारे पोषक तत्त्व प्रदान करता है जो बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए और अच्छे शारारिक विकास के लिए जरुरी है। माँ का दूध बच्चे के मस्तिष्क के सही विकास के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  क्या है स्तनपान -:  माँ के द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनपाइयों में आम क्रिया होती है। स्तनपान नवजात शिशु के लिए प्रकृति का सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक आहार है । स्तनपान के समय माँ और शिशु का भावनात्मक रिश्ता जुड़ता है जिस समय माँ अपने शिशु को स्तनो से लगाती है तब माँ कि स्कीन से उत्पन्न गर्माहट से शिशु के शरीर के तापक्रम को मेनटेन करने मे स्तनपान सहायता प्रदान करता  है ।  क्या फायदे है शिशु को स्तनपान के  ¤ नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। माँ के दूध से यह शक्ति शिशु को प्राप्त होती है।  ¤ स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है।  ¤ स्तनपान शिशु को इन

टायफाइड बुखार कारण लक्षण और उपचार

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टायफाइड बुखार काफी आम है विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्वभर मे टायफाइड के लगभग दो करोड मामले हर साल सामने आते है । जिनमे से लगभग दो लाख लोगो की मृत्यु भी हो जाती है । टायफाइड के कारण यह बुखार साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया से संक्रमित पानी या भोजन के सेवन से या इस बीमारी से संक्रमित रोगी के निकट संपर्क मे आने से फैलता है । इस रोग को मियादी बुखार, मोतीझरा या आतो का बुखार के नाम से भी जाना जाता है । टायफाइड के लक्षण इस रोग के हो जाने पर निम्न लक्षण दिखाई दे सकते है -: ● सर दर्द ● पेट दर्द ● बदन दर्द ● कब्ज या दस्त ● मांसपेशियो मे दर्द ● भूख कम लगना ● शरीर मे कमजोरी व थकान ● वजन घटना ● शरीर पर चकत्ते पडना यह बीमारी तीन से चार सप्ताह तक रह सकती है । इस दौरान रोगी को उबला हुआ पानी व सुपाच्य भोजन ही देना चाहिए। तथा उसके कमरे की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।   रोगी को मल त्याग के बाद हाथो को गुनगुने पानी व साबुन से अच्छे से 20-30 सैकेंड तक धोना चाहिए। रोगी को घरेलु कार्यो से दूर रहना चाहिए जैसे रसोई या खाना पकाने के कार्य क्योकि यह बैक्टीरिया खाद्य पदार्थो के माध्यम से

सुबह उठते ही जोडो मे दर्द यूरिक एसिड की निशानी , न करे नजरअंदाज, उपाय है इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए आज ही अपनाये हर्बल इलैक्ट्रोहोम्योपैथी को अगर आपको सुबह उठकर जोडो मे तेज दर्द होता है तो आप इसे इग्नोर न करे । क्या है यूरिक एसिड? यूरिक एसिड हमारे शरीर मे मौजूद एक तरह का केमिकल होता है जो कि वेस्ट प्रोडेक्ट होता है । यह प्यूरीन नामक प्रोटीन के टूटने से बनता है जिसे किडनी के द्वारा फिल्टर कर के पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर कर  दिया जाता है । यूरिक एसिड का लेवल कब हाई होता है ? ज्यादातर रक्त मे यूरिक एसिड का स्तर तब बढता है जब शरीर मे प्यूरीन अधिक बनता है या भोजन के द्वारा आप अधिक प्यूरीन ग्रहण कर लेते है तथा कई बार किडनी की कार्यक्षमता कम होने के कारण प्यूरीन का फिल्ट्रेशन कम होता है जिस कारण आपके शरीर मे यूरिक एसिड का लेवल हाई हो जाता है। तथा इसके अलावा भी कई कारण है जिनकी वजह से यूरिक एसिड के लेवल मे बदलाव हो सकता है -: ¤ मोटापा ¤ मादक पदार्थो का अधिक सेवन ¤ अनुवांशिक कारण ¤ मूत्रवर्धक मेडिसिन का प्रयोग ¤ किडनी की समस्या ¤ कीमोथेरेपी ¤ हाइपोथायराइडिज्‍म ¤ अधिक प्यूरीन युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन आदि। सावधानी इस समस्या के होने पर आपको अप

क्या है फाइमोसिस और उसका उपचार ?

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फाइमोसिस क्या है ? फाइमोसिस लिंग के आगे की त्वचा के कसाव को कहते है जिसमे लिंग के आगे की त्वचा पीछे की ओर नही आ पाती है । नवजात व छोटे बच्चो मे यह सामान्य होता है । परन्तु बडे बच्चो मे यह त्वचा के किसी बीमारी या  संक्रमण के कारण हो सकता है, जिसके होने पर त्वचा मे घाव भी हो जाते है। त्वचा का यह कसाव कब सामान्य होता है ? आमतौर पर छोटे बच्चो मे जन्म से लेकर दो या तीन साल तक यह सामान्य होता है क्योकि इस उम्र तक लिंग के आगे की त्वचा प्राकृतिक रूप से चिपकी होती है और लगभग जन्म से दो से तीन साल के बाद यह अपने आप शिश्नमुंड से अलग हो जाती है और फिर अगर इस त्वचा को हल्के हाथ से पीछे किया जाये तो यह आसानी से पीछे चली जाती है । परन्तु कुछ बच्चो मे फ़ोरस्किन ( शिश्नमुंड की त्वचा ) को अलग होने मे ज्यादा समय भी लगता है इसमे चिंता की कोई बात नही है बस आपको अपने चिकित्सक से परामर्श कर लेना चाहिए।  परन्तु जबरदस्ती स्किन को शिश्नमुंड से अलग करने का प्रयास नही करना चाहिए ऐसा करने से परेशानी हो सकती है । ● पेशाब करते समय जलन या दर्द होना ● लिंग मे सुजन या लाली होना ● शिश्नमुंड के आस- पास और ऊपरी त्वचा म

इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की औषधिया और विज्ञान

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  इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक के रचयिता डा. काउन्ट सीज़र मैटी जी ने 38 मेडिसिन बनाई थी परन्तु समय के साथ-साथ और ज्यादा खोज होने के बाद इनकी संख्या 60 पर पहुंच गई और साथ ही साथ 5 बिजलियाँ और छठी A.P.P. भी प्रयोग मे शामिल हो गई।  कई रिसर्च सेंटर व चिकित्सक लगातार अन्य औषधियो की खोज मे देश - विदेश मे लगे हुए है । इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की औषधियो को दस भागो मे बांटा गया है । (1) SCROFOLOSO (2) LINFATICO (3) PETTORALE (4) ANGIOITICO (5) FEBRIFUGO (6) VERMIFUGO (7) VENEREO (8) CANCEROSO (9) ELECTRICITIES (10) A.P.P. इलैक्ट्रोहोम्योपैथी की औषधियो का मिश्रण वैज्ञानिक ढंग से और प्राकृतिक तरीके से किया गया है , क्योंकि मानव शरीर अलग-अलग अवयवो से मिलकर बना है ,जो स्वयं कोई न कोई कार्य शरीर की रक्षा के लिए करते रहते है और एक दूसरे के सहायक भी है जैसे -: गुर्दे , मूत्र प्रणाली ,मूत्राशय और मूत्रमार्ग जो आपस मे मिलकर एक ही कार्य को करते है । अर्थात शरीर से वे सभी पदार्थ जो विषैले है या जिनका कार्य पूरा हो चुका है ओर शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले है ,उन सभी पदार्थो को यह सब आपस मे मिलकर शरीर से बाह