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डायपर रैशेज और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  शिशु के यौन अंगों पर लाल रंग के चकत्तों  को डायपर रैशेज कहा जाता है। मल या पेशाब से जलन, संवेदनशील  त्वचा और ज्‍यादा टाइट डायपर पहनने की वजह से डायपर रैशेज हो सकते हैं। बच्‍चों की स्किन बहुत सेंसिटिव होती है इसलिए कोई भी क्रीम का मेडिकल ट्रीटमेंट का इस्‍तेमाल करने से बचना चाहिए। शिशुओं की त्वचा बहुत ही नाजुक और  संवेदनशील होती है जिस पर ददोरे और शोथ  (सूजन) होने की संभावना   रहती है। आपका  शिशु जो डायपर पहनता है, उससे भी खुजली हो  सकती है और इसके कारण डायपर रैश हो सकते हैं। भले ही आप अपने शिशु के लिए कपड़े की नैपी का इस्तेमाल करते हों, फिर भी डायपर रैश होना आम बात है। तथापि डायपर  रैश हल्की  प्रकृति   का होता है और  अच्छी  साफ-सफाई  रखने  से इसकी  आसानी   से  देखभाल  की जा सकती है। डायपर  रैश  के  लक्षण:   - ददोरे शिशुओं के गुप्तांगों और कूल्हों पर  लाल चकते के रूप में दिखाई देते हैं। इन लाल चकतों पर शुरुआती अवस्था में ही ध्यान दिए जाने की आवश्यकता होती है अथवा ये छोटी-छोटी फुंसियों  का रूप धारण कर सकते हैं। डायपर  रैश  के  कारण: - डायपर रैश  डायपर और त्वचा में स्थित  नमी और ब

लम्पी स्किन रोग और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  देश के कई राज्‍यों में गायों और भैंसों में लम्पी स्किन रोग वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। जिसकी वजह से गुजरात, राजस्‍थान सह‍ित कई राज्‍यों में लाखो  की संख्‍या में मवेशी संक्रमित हुये है और हजारो की संख्या मे मवेशियों की मौत हो चुकी है। मरने वाले पशुओं में सबसे बड़ी संख्‍या गायों की है। लम्पी स्किन रोग एक संक्रामक रोग है जो वायरस की वजह से तेजी से फैलता है और कमजोर इम्‍यूनिटी वाली गायों को खासतौर पर प्रभावित करता है। इस रोग का कोई ठोस इलाज न होने के चलते सिर्फ वैक्‍सीन के द्वारा ही इस रोग पर नियंत्रण और रोकथाम की जा सकती है। हालांकि पशु चिकित्‍सा विशेषज्ञों की मानें तो कुछ देसी और आयुर्वेदिक उपायों के माध्‍यम से भी लंपी रोग से संक्रमित हुई गायों और भैंसों ठीक किया जा सकता है। वही दूसरी और इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन के द्वारा भी लम्पी रोग मे आशातीत लाभ प्राप्त हो सकते है । क्योंकि इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की मेडिसिन रोग को जड़मूल से ठीक करने के साथ-साथ मवेशियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को  मजबूत करती  है । इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन मे S1L1Ver1 1st dilution B.D 15 से 20  बूंद

टॉन्सिल स्टोन और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  टॉन्सिल एक ग्रंथि जैसी दिखने वाली संरचना होती है। शरीर में दो टॉन्सिल होते हैं, जो गले के पिछले हिस्से में दोनों तरफ होते हैं। टॉन्सिल्स वायरस व बैक्टीरिया को मुंह व गले के माध्यम से शरीर के अंदर जाने से रोकते हैं और आपके शरीर को रोगों से बचाने का काम करते हैं। टॉन्सिल में एक स्पंज की तरह छेद व दरारें होती हैं। इन दरारों व छेदों में बैक्टीरिया, भोजन के टुकड़े, डेड स्किन सेल्स और बलगम जमा होकर एक कठोर गांठ बन जाती है, जिसे “टॉन्सिल स्टोन” या "टॉन्सिल में सफेद दाना होना" कहा जाता है।  कुछ लोगों को टॉन्सिल स्टोन हो जाने के बावजूद भी महसूस नहीं होता है कि उनको यह समस्या हो गयी है। कुछ मामलों में टॉन्सिल को देख पाना काफी मुश्किल हो सकता है, ये आकार में एक चावल के दाने से लेकर एक अंगूर जितने बड़े हो सकते हैं। कई बार टॉन्सिल स्टोन का आकार काफी बड़ा हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप टॉन्सिल में भी काफी सूजन और इनमें से बदबू भी आने लग जाती है। टॉन्सिल स्टोन होने से मुंह से बदबू आना, दम घुटना, निगलने में कठिनाई और कान में दर्द होने जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं।   क्या है टॉन्सिल स्टोन ?