एक उचित वजन बनाए रखना पित्त की पथरी को कम करने का सबसे सही तरीका है। नियमित व्यायाम और कम कैलोरी वाला आहार पथरी को दूर रखने में मदद करता है। भूखा रहने से बचें क्योंकि इससे पथरी बनने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा जो लोग अपना वजन कम करने का प्रयास करते हैं, वे इसे बहुत तेज़ी से नहीं करें वह अपना लक्ष्य 500 ग्राम से 1 किलोग्राम/सप्ताह कम करने का रखे । पित्त की पथरी कैसे बनती है : पित्त के बिना पाचन क्रिया की शुरुवात नहीं हो सकती क्योकि गॉल ब्लैडर और लीवर के मध्य बाइल डक्ट नामक एक छोटी सी नली होती है । यह नली गॉलब्लेडर को पित्त तक पहुँचाने का काम करती है। जैसे ही व्यक्ति के शरीर में भोजन जाता है वैसे ही यह नली पित्त को एक छोटी आंत के उपयुक्त हिस्से में भेज देती है। यहाँ से आरम्भ होती है पाचन क्रिया - खाना पचने के लिए हमे Bile जूस की आवशयकता होती है, ये Bile जूस लिवर में बनता है और पित्ताशय का काम होता है की इसे भोजन से पहले संग्रहित करना, जिस कारण से भोजन से पहले ये पित्ताशय पूर्ण रूप से भरा होता है । भोजन के बाद , पित्ताशय बिलकुल खाली हो जाता है क्योंकि ...
जहां दवाईया इतनी मंहगी वही रोगो पर कम असर होती जा रही है ,चाहे वो चेहरे की सुन्दरता के लिए हो या अन्य रोगो के लिए तो ऐसे मे क्या विकल्प है ? आइये आज हम आपको बताने जा रहे है कि हम इलैक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा को अगर अपनाते है तो हमे क्या लाभ प्राप्त होते है । आप तो जानते ही आज के समय मे सभी लोग हर बीमारी मे चाहे वह बीमारी छोटी हो या बडी ,एलोपैथिक मेडिसिन का ही प्रयोग करते है ,परन्तु शायद कुछ लोग यह नही जानते की इन एलोपैथिक मेडिसिन के साइड इफैक्ट्स भी बहुत होते है ,जिस के कारण जहा यह एलोपैथिक मेडिसिन एक रोग को दबाती है वही दूसरे रोग का कारण बनती है । वही हर्बल इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन का मानव शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नही पडता है और यह रोगो को चाहे वह नया है या पुराना बडी ही आसानी से जल्द से जल्द ठीक कर देती है । तो आइये जानते है इन इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक दवाओ के 5 फायदे के बारे मे , 1. यह रोग को जड़मूल से निकालने के साथ इन दवाओं का शरीर के किसी भी अंग पर दुष्प्रभाव(Drug bad effect or side effect) नहीं होता अर्थात इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की दवाएं पूर्णत: हानिरहित है इनका को...
क्या है वेरीकोज वेन्स ? ये वे रक्त वाहिकाये होती है जो रक्त को ह्रदय की ओर ले जाती है । इनके अन्दर अशुद्ध रक्त होता है जो त्वचा के नीचे नीले रंग की नसो मे बहता है । यह रक्त आक्सीजन रहित होता है तथा आक्सीजन प्राप्ति के लिए ह्रदय से होता हुआ फेफडो मे जाता है वहा से शुद्ध होकर आक्सीजन प्राप्त कर फिर ह्रदय से होता हुआ लाल चमकदार रंग मे परिवर्तित होकर पूरे शरीर मे पहुंच जाता है । यह प्रक्रिया आपके शरीर मे लगातार चलती रहती है। आपने कभी अपनी त्वचा पर ध्यान दिया होगा तो आपने देखा होगा कि त्वचा के नीचे नीले रंग की नसे होती है जो अशुद्ध रक्त से भरी होती है तथा जब इन नसो पर रक्त का दबाव पडता है और किन्ही कारणो से रक्त आगे की ओर नही बढ पाता है या रूकावट आ जाती है तो यह नसे बढने लगती है और फूलकर मोटी हो जाती है इन्ही नसो को वेरीकोज वेन्स कहते है । वेरीकोज वेन्स के लक्षण-: • नीली व बैंगनी नसे • मांसपेशियो मे एठन • पैरो मे सूजन व भारीपन • पैरो मे टेढ़ी- मेढ़ी रस्सी जैसी नसे • लगातार खडे या बैठकर कार्य करने के बाद पैरो मे असहनीय दर्द • नसो के आसपास खुजली होना वेरीकोज वेन्स का...
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