क्या है वेरीकोज वेन्स ? ये वे रक्त वाहिकाये होती है जो रक्त को ह्रदय की ओर ले जाती है । इनके अन्दर अशुद्ध रक्त होता है जो त्वचा के नीचे नीले रंग की नसो मे बहता है । यह रक्त आक्सीजन रहित होता है तथा आक्सीजन प्राप्ति के लिए ह्रदय से होता हुआ फेफडो मे जाता है वहा से शुद्ध होकर आक्सीजन प्राप्त कर फिर ह्रदय से होता हुआ लाल चमकदार रंग मे परिवर्तित होकर पूरे शरीर मे पहुंच जाता है । यह प्रक्रिया आपके शरीर मे लगातार चलती रहती है। आपने कभी अपनी त्वचा पर ध्यान दिया होगा तो आपने देखा होगा कि त्वचा के नीचे नीले रंग की नसे होती है जो अशुद्ध रक्त से भरी होती है तथा जब इन नसो पर रक्त का दबाव पडता है और किन्ही कारणो से रक्त आगे की ओर नही बढ पाता है या रूकावट आ जाती है तो यह नसे बढने लगती है और फूलकर मोटी हो जाती है इन्ही नसो को वेरीकोज वेन्स कहते है । वेरीकोज वेन्स के लक्षण-: • नीली व बैंगनी नसे • मांसपेशियो मे एठन • पैरो मे सूजन व भारीपन • पैरो मे टेढ़ी- मेढ़ी रस्सी जैसी नसे • लगातार खडे या बैठकर कार्य करने के बाद पैरो मे असहनीय दर्द • नसो के आसपास खुजली होना वेरीकोज वेन्स का कारण -: वेरीक
ये समस्या आंखों के लाल होने से शुरू होती है और उसके साथ - साथ आंख में खुजली, चुभन और कई बार सूजन भी आ जाती है। मेडिकल भाषा मे इसे कंजंक्टिवाइटिस कहते हैं और आम भाषा मे आई फ्लू , आंख आना , गुलाबी आंखे आदि नामो से जाना जाता है । कई बार इस रोग के होने पर लापरवाही रोग को बढा सकती है । अतः समय ⌚ पर आंखो को साफ ठंडे पानी से दिन मे कई बार धोना चाहिए। इस रोग पर इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन का प्रभाव तुरन्त असर दिखाता है और रोग की तीव्रता को कम करने के साथ-साथ जल्द ठीक भी करता है । सावधानी इस रोग के होने पर साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आंखो को बार बार हाथो से नही छूना चाहिए क्योकि यह फैलने वाला रोग है यह संक्रमित व्यक्ति की आंखो को देखने से नही फैलता अपितु संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने या उसका प्रयोग किया तौलिया , साबुन आदि इस्तेमाल करने से फैल सकता है । इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक उपचार इस रोग मे इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की मेडिसिन बहुत कारगर है आई ड्राप A2C5B.E/G.E +गुलाब जल +आषुत जल आई ड्राप की दो दो बूंद दिन मे चार बार आंखो मे डाले तथा दो चम्मच गाय के कच्चे व ठंडे दूध मे आई ड्
डा. काउन्ट सीज़र मैटी जी के अनुसार सर्वप्रथम औषधियो से स्पेजरिक एसेंस तैयार किए जाते है । फिर स्पेजरिक एसेंस का एक भाग तथा नौ भाग डिस्टिल वाटर को आपस मे मिलाया जाता है यह मिश्रण D1 कहलाता है । अब D1का एक भाग और नौ भाग डिस्टिल वाटर को आपस मे मिलाकर जो मिश्रण तैयार हुआ उसे D2 की संज्ञा दी जाती है । इसी क्रम मे D2 का एक भाग और नौ भाग डिस्टिल वाटर को मिलाकर D3 तैयार किया जाता है । ये तीनो (D1,D2,D3) मेन डायल्यूशन हुए। अब बारी आती है पोटेन्सी या 1st dilution की इसे बनाने के लिए D3 का एक भाग और डिस्टिल वाटर का 47 भाग आपस मे मिलाकर 48 स्ट्रोक (झटके) बोतल को देने पर यह मिश्रण 1st डायल्यूशन कहलायेगा । इसी क्रम मे 1st डायल्यूशन का एक भाग व 47 भाग डिस्टिल वाटर के मिलाकर 48 स्ट्रोक देने के बाद यह मिश्रण 2nd डायल्यूशन तैयार है । नियमानुसार इसी क्रम मे आप अन्य 3rd ,4th ,10th, 30th 200rd , 1000th डायल्यूशन तैयार कर सकते है । Ist और 2nd dilution पोजिटिव 3rd न्यूट्रल, 4th और 5th नेगेटिव होगे । 5th से आगे सभी डायल्यूशन जैसे 10 , 30, 100 ,200,1000 सभी डायल्यूशन नेगेटिव कहलायेंगे। आइए अब एक और त
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