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Calf muscles pain and electrohomoeopathy

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पिंडली का दर्द और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी   कभी-कभी पैर में दबाव, ज्‍यादा चलने के कारण नसों में तनाव या क‍िसी अंदरुनी चोट के कारण से प‍िंडली में दर्द उठने लगता है। प‍िंडली में दर्द बढ़ने पर कई बार सूजन आ जाती है। प‍िंडली में दर्द होने पर डॉक्‍टर अल्‍ट्रासाउंड, एक्‍सरे और एमआरआई स्‍कैन आद‍ि की मदद से दर्द का कारण पता लगाते हैं। पिंडलियो मे दर्द होने पर चलने -फिरने , उठने -बैठने , सीढिया चढते समय कठिनाई आती है ओर दर्द होता है ।  कारण   वैसे तो अधिकांश मामलो मे अंदरूनी चोट के कारण ही दर्द होता है परन्तु कई बार अन्य कारण भी होते है जैसे  ● कई बार टाइट जूते पहनने से पिंडलियो मे दर्द बन जाता है । ● कम पानी पीने से डिहाइड्रेशन के कारण भी ये दर्द हो सकता है । ●  मिनरल की कमी के कारण आदि।  सावधानी   दर्द या सूजन होने पर अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य करे , और दिन भर मे 5- 7 गिलास पानी पीये , जूते या चप्पल टाइट ना पहने और हो सके तो कपडे भी ज्यादा टाइट ना हो जैसे जींस उपचार   पींडलियो मे दर्द होने पर इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन का प्रयोग हितकारी है । ये हर्बल मेडिसिन है और इनका कोई दुष्प्रभाव भी नही

आई फ्लू और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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 ये समस्या  आंखों के लाल होने से शुरू होती है और उसके साथ - साथ आंख में खुजली, चुभन और कई बार सूजन भी आ जाती है।  मेडिकल भाषा मे इसे कंजंक्टिवाइटिस  कहते हैं और आम भाषा मे आई फ्लू , आंख आना , गुलाबी आंखे आदि नामो से जाना जाता है ।  कई बार इस रोग के होने पर लापरवाही रोग को बढा सकती है । अतः समय ⌚  पर आंखो को साफ ठंडे पानी से दिन मे कई बार धोना चाहिए।  इस रोग पर इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन का प्रभाव तुरन्त असर दिखाता है और रोग की  तीव्रता को कम करने के साथ-साथ जल्द ठीक भी करता है ।  सावधानी  इस रोग के होने पर साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आंखो को बार बार हाथो से नही छूना चाहिए क्योकि यह फैलने वाला रोग है यह संक्रमित व्यक्ति की आंखो को देखने से नही फैलता अपितु संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने या उसका प्रयोग किया तौलिया , साबुन आदि इस्तेमाल करने से फैल सकता है ।   इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक उपचार  इस रोग मे इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की मेडिसिन बहुत कारगर है  आई ड्राप  A2C5B.E/G.E  +गुलाब जल +आषुत जल  आई ड्राप की दो दो बूंद दिन मे चार बार आंखो मे डाले तथा दो चम्मच गाय के कच्चे व ठंडे दूध मे आई ड्

फैटी लीवर और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  आइये बात करते है फैटी लीवर के बारे मे , लीवर हमारे  शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथी कहलाती है । लीवर हमारे शरीर मे भोजन को पचाने ,पित्त बनाने , संक्रमण से लडने , ब्लड-शुगर को नियंत्रित रखने और प्रोटीन का निर्माण करने मे एक अहम भूमिका निभाता है ,लीवर शरीर से विषैले पदार्थ को निकालने व फैट को कम करने का कार्य भी बहुत अच्छे से करता है । एक स्वस्थ लीवर मे फैट बहुत कम अथवा बिल्कुल भी नही होता है ,परन्तु अगर आप बहुत ज्यादा शराब का सेवन करते है या बहुत अधिक भोजन खाते है तो आपका शरीर अतिरिक्त कैलोरी को वसा(फैट) मे बदल देता है , जिसे लीवर अपनी कोशिकाओ मे जमा कर लेता है ,और धीरे - धीरे  लीवर मे फैट की मात्रा बढती चली जाती है ।  90% लोगो मे अनियमित खानपान या अधिक शराब के पीने से इस वसा की मात्रा अत्यधिक बढ जाती है । जिसे फैटी लीवर कहा जाता है ।  पहले फैटी लीवर होने का मुख्य कारण  शराब को ही माना जाता था । परन्तु अब बदलता लाइफस्टाइल भी फैटी लीवर का कारण बनता जा रहा है । आजकल के  बदलते खानपान के कारण लगभग 30% लोगो मे फैटी लीवर की समस्या होने लगी है । फैटी लीवर के लोगो मे दिल का दौरा और स्ट्रोक होने का

डायपर रैशेज और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  शिशु के यौन अंगों पर लाल रंग के चकत्तों  को डायपर रैशेज कहा जाता है। मल या पेशाब से जलन, संवेदनशील  त्वचा और ज्‍यादा टाइट डायपर पहनने की वजह से डायपर रैशेज हो सकते हैं। बच्‍चों की स्किन बहुत सेंसिटिव होती है इसलिए कोई भी क्रीम का मेडिकल ट्रीटमेंट का इस्‍तेमाल करने से बचना चाहिए। शिशुओं की त्वचा बहुत ही नाजुक और  संवेदनशील होती है जिस पर ददोरे और शोथ  (सूजन) होने की संभावना   रहती है। आपका  शिशु जो डायपर पहनता है, उससे भी खुजली हो  सकती है और इसके कारण डायपर रैश हो सकते हैं। भले ही आप अपने शिशु के लिए कपड़े की नैपी का इस्तेमाल करते हों, फिर भी डायपर रैश होना आम बात है। तथापि डायपर  रैश हल्की  प्रकृति   का होता है और  अच्छी  साफ-सफाई  रखने  से इसकी  आसानी   से  देखभाल  की जा सकती है। डायपर  रैश  के  लक्षण:   - ददोरे शिशुओं के गुप्तांगों और कूल्हों पर  लाल चकते के रूप में दिखाई देते हैं। इन लाल चकतों पर शुरुआती अवस्था में ही ध्यान दिए जाने की आवश्यकता होती है अथवा ये छोटी-छोटी फुंसियों  का रूप धारण कर सकते हैं। डायपर  रैश  के  कारण: - डायपर रैश  डायपर और त्वचा में स्थित  नमी और ब

लम्पी स्किन रोग और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  देश के कई राज्‍यों में गायों और भैंसों में लम्पी स्किन रोग वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। जिसकी वजह से गुजरात, राजस्‍थान सह‍ित कई राज्‍यों में लाखो  की संख्‍या में मवेशी संक्रमित हुये है और हजारो की संख्या मे मवेशियों की मौत हो चुकी है। मरने वाले पशुओं में सबसे बड़ी संख्‍या गायों की है। लम्पी स्किन रोग एक संक्रामक रोग है जो वायरस की वजह से तेजी से फैलता है और कमजोर इम्‍यूनिटी वाली गायों को खासतौर पर प्रभावित करता है। इस रोग का कोई ठोस इलाज न होने के चलते सिर्फ वैक्‍सीन के द्वारा ही इस रोग पर नियंत्रण और रोकथाम की जा सकती है। हालांकि पशु चिकित्‍सा विशेषज्ञों की मानें तो कुछ देसी और आयुर्वेदिक उपायों के माध्‍यम से भी लंपी रोग से संक्रमित हुई गायों और भैंसों ठीक किया जा सकता है। वही दूसरी और इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन के द्वारा भी लम्पी रोग मे आशातीत लाभ प्राप्त हो सकते है । क्योंकि इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक की मेडिसिन रोग को जड़मूल से ठीक करने के साथ-साथ मवेशियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को  मजबूत करती  है । इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक मेडिसिन मे S1L1Ver1 1st dilution B.D 15 से 20  बूंद

टॉन्सिल स्टोन और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  टॉन्सिल एक ग्रंथि जैसी दिखने वाली संरचना होती है। शरीर में दो टॉन्सिल होते हैं, जो गले के पिछले हिस्से में दोनों तरफ होते हैं। टॉन्सिल्स वायरस व बैक्टीरिया को मुंह व गले के माध्यम से शरीर के अंदर जाने से रोकते हैं और आपके शरीर को रोगों से बचाने का काम करते हैं। टॉन्सिल में एक स्पंज की तरह छेद व दरारें होती हैं। इन दरारों व छेदों में बैक्टीरिया, भोजन के टुकड़े, डेड स्किन सेल्स और बलगम जमा होकर एक कठोर गांठ बन जाती है, जिसे “टॉन्सिल स्टोन” या "टॉन्सिल में सफेद दाना होना" कहा जाता है।  कुछ लोगों को टॉन्सिल स्टोन हो जाने के बावजूद भी महसूस नहीं होता है कि उनको यह समस्या हो गयी है। कुछ मामलों में टॉन्सिल को देख पाना काफी मुश्किल हो सकता है, ये आकार में एक चावल के दाने से लेकर एक अंगूर जितने बड़े हो सकते हैं। कई बार टॉन्सिल स्टोन का आकार काफी बड़ा हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप टॉन्सिल में भी काफी सूजन और इनमें से बदबू भी आने लग जाती है। टॉन्सिल स्टोन होने से मुंह से बदबू आना, दम घुटना, निगलने में कठिनाई और कान में दर्द होने जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं।   क्या है टॉन्सिल स्टोन ?

हर्निया कारण लक्षण और इलैक्ट्रोहोम्योपैथी

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  क्या है हर्निया ? हर्निया में मनुष्य की पेट की मांसपेशिया कमजोर हो जाती हैं और उनके अंदर से आंतें या कोई कंटेंट बाहर आने लगता है और लेट जाने पर वापस चला जाता है, बहुत बार हर्निया में खड़े होने में, खांसने में या कोई अन्य कार्य करने में परेशानी होने लगती है और लेट जाने पर इससे आराम मिलता है। कब होता है हर्निया ? हर्निया की समस्या तब उत्त्पन्न होती है जब पेट में से कोई अंग या मांसपेशी या ऊतक किसी छेद की सहायता से बाहर आने लगता है। उदाहरण के लिए, बहुत बार आंत, पेट की कमजोर दीवार में छेद करके बाहर आ जाती हैं। पेट में हर्निया होना सबसे आम हैं, लेकिन यह जाँघ के ऊपरी हिस्से, बीच पेट में और ग्रोइन क्षेत्रों (पेट और जाँघ के बीच का भाग) में भी हो सकता है। इसके लक्षण आमतौर पर दिखाई नहीं देते हैं पर कभी कभी तीव्रता से दर्द होना हर्निया में काफी सामान्य होता है और इसी से हम पहचान सकते हैं कि हमे हर्निया की समस्या है। आमतौर पर हर्निया जानलेवा नहीं होता है, लेकिन यह अपने आप सही नहीं होता है। कभी-कभी हर्निया से होने वाली खतरनाक जटिलताओं को रोकने के लिए या समाप्त करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो